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Monday, May 23, 2011

वो औरत

उस शहर में सब लोग मुख्य चोराहे  पर जमा थे,बूढ़े,जवान, मर्द,औरतें,अमीर,गरीब ,सब रंग बिरंगे कपडे पहने हुए ,सजे धजे,सब के चेहरे पर लबालब ख़ुशी थी.शायद उस शहर में कोई त्यौहार मनाया जा रहा था,क्रिसमस,दिवाली या ईद... हर तरफ ख़ुशी का माहोल था.हर कोई अपने परिवार दोस्तों के साथ ख़ुशी मना रहा था.सब लोग गले मिल रहे थे,ब्चे आपस में  खेल कूद रहे थे ,प्रेमी जोड़े हाथों में हाथ डाले टहल रहे थे ,कहीं आँखों ही आँखों में इशारे हो रहे थे,तो कहीं गले में बाहें डाली जा रही थी.चारों तरफ की गलियों से जैसे हँसते मुस्कुराते रंगों के मेले चले आ रहे थे चोराहे की तरफ.हर कोई खुश था,कोई अपनी ख़ुशी में खुश,तो कोई दुसरो की ख़ुशी में खुश,तो कोई बस खुश-खुश.तभी उतर दिशा की गली से एक औरत चोराहे की तरफ चली आ रही थी.काले कपडे पहने,नंगे पैरों से ढीली सी चाल से चलते हुए एक उदास,बहुत उदास अनुपम सुंदरी,जैसे ताजमहल को किसी ने  काले रंग से रंग दिया हो,यां चेनाब का पानी सुख गया हो,हिम की बर्फ पिघल गयी हो.ऐसा लगता था उसके भोले से चेहरे पर मुस्कान न होना ज़माने का कोई बड़ा संगीन गुनाह हो ,जैसे किसी जलपरी को धरती पर रहने का श्राप हो,जैसे वो मौत का इस कद्र इंतज़ार कर रही थी की दुःख उसकी रग़ रग़ में बस गया था,जैसे उसने दुःख को एक ओड़नी बना के ओड़ लिया हो.वो औरत चोराहा पर कर दूसरी तरफ खो गयी.कहने की जरुरत नही किसी ने भी उस पर ध्यान नही दिया. उस दिन उस चोराहे पर मोजूद लोगों ने शिव के बिर्हड़े,अमृता के सुन्हडों के  जिन्दा रूप को  देखने  का मौका खो दिया .

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